लेखनी कविता -फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर - ग़ालिब

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फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर / ग़ालिब फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर है दाग़-ए-इश्क़ ज़ीनत-ए-जेब-ए-कफ़न हुनूज़   है नाज़-ए-मुफ़्लिसाँ ज़र-ए-अज़-दस्त-रफ़्ता पर हूँ गुल-फ़रोश-ए-शोख़ी-ए-दाग़-ए-कोहन हुनूज़ मै-ख़ाना-ए-जिगर में यहाँ ख़ाक भी ...

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